दो प्रधानमंत्रियों के दो कोष का
द्वंद
गांधी जी द्वारा
स्थापित अखिल भारत चरखा संघ से विकेन्द्रित इकाई क्षेत्रीय पंजाव खादी मंडल,
पानीपत ने जब यह निर्णय लिया कि उनके कार्यकर्ता एक दिन का वेतन ‘प्रधानमंत्री
केयर्स फंड’ (Prime Minister Citizen Assistance and Relief in Emergency
Situation Fund) में भेजेंगे, कई ऐसे संदेश प्राप्त हुए हैं जिनमे सुझाया गया है
की यह राशी पहले से बने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष में जमा कराया जाना
चाहिए न कि नए बने प्रधानमंत्री केयर्स फंड में. ऐसे सवाल कई लोगों, सामाजिक
संगठनों, राजनैतिक दलों और मीडिया में भी उठाये गए हैं.
सवाल वाजिब भी है, जब
पहले से ही एक फंड है तो दूसरे की क्या आवश्यकता पडी. क्या कोरोना महामारी की आड़
में सरकार का कोई अन्य एजेंडा हो सकता है. दोनों फंड किन अवस्थाओं में स्थापित
किया गया, पहले हम उसकी जानकारी प्राप्त कर लें. ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता
कोष’ जनवरी, १९४८ में उस समय के प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल नेहरु द्वारा देश के
विभाजन के समय विस्थापितों के पुनर्वास और सहायता के लिए स्थापित किया गया था. उन्होंने जनता से
इस कोष में दान देने के लिए अपील किया. उनके आवाहन पर जनता ने इस कोष में दिल खोल
कर दान दिया और आज तक दान कर रही हैं. इसमे केवल जनता, संस्थाओं और कंपनियों ने
पैसा दिया है, सरकार का इसमे कोई पैसा नहीं है. विस्थापन कार्य संपन होने के बाद
इसका उपयोग प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, तूफान, भूकंप से पीड़ित लोगो की सहायता और
पुनर्वास के लिए किया जाने लगा. इसके साथ ही भयंकर दुर्घटनाओं, दंगो से पीड़ित
लोगों को भी इसमे शामिल किया गया. स्वास्थ्य सेवाओं को भी इसमे जोड़ा गया और लोगो
को गंभीर बिमारी जैसे ह्रदय की शल्यचिकित्सा, किडनी प्रत्यारोपण, कैंसर का इलाज
आदि के लिए सहायता दी जाने लगी.
अपने सत्तर वर्षों से
अधिक के काल में इस कोष में सबसे अधिक दान ९२६ करोड़ रूपए वर्ष २००४-०५ में प्राप्त
हुए जब हिंद महासागर में आये सुनामी तूफान से लगभग दस हजार लोग मारे गए थे. इस
राशि का उपयोग इन लोगो के परिवार की सहायता और पुनर्वास के लिए किया गया. इसके
अतिरिक्त वर्ष २००९ में उड़ीसा और बंगाल में आये ऐला तूफ़ान से प्रभावित लोगो की
सहायता और पुनर्वास, २०१२ में उत्तराखंड और २०१४
कश्मीर में आये भयंकर बाढ़ से प्रभावित लोगो की सहायता के लिए किया गया. समय
की आवश्यकता के अनुसार इस कोष से अन्य पीड़ित लोगो की सहायता की गई जिसमे कुम्भ में
भगदड़, छत्तीसगढ़ में नक्सली हमले, तमिलनाडु में पटाखों की फैक्ट्री में आग तथा कई
स्थानों पर दंगो में घायल और मारे गए लोगो और उनके परिवार की सहायता भी शामिल है.
‘प्रधानमंत्री केयर्स
फंड’ की स्थापना २८ मार्च, २०२० को कोरोना महामारी जैसी अन्य आपातकालीन, संकट की स्थिति
में प्रभावित लोगो की सहायता के लिए किया गया है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
कहा कि कोरोना महामारी के रोकने के लिए लोगो ने इसमे अपनी सहायता देने की इच्छा
जाहिर की. उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए इस कोष की स्थापना की गयी है जो स्वस्थ
भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. यह आपदा प्रबंधन क्षमता को मजबूत
करेगा और शोध आदि के माध्यम से लोगो की सेवा करने में सहायक होगा. जन साधारण के
अतिरिक्त प्रसिद्ध व्यक्तियों एवं संस्थाओं ने भी इस कोष में दान देने का संकल्प
लिया है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी द्वारा इस फंड के घोषणा होते ही इस पर राजनीति आरम्भ हो गयी और पहले से ही एक
कोष होने के बावजूद दूसरे की आवश्यकता क्यों पड़ी? प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र
गुहा ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ की तीखी आलोचना करते हुए कहते हैं कि
‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ के वजूद में होते हुए इस कोष के स्थापना की कोई
आवश्यकता नहीं थी. यह स्वयं की प्रशंसा के लिए गढ़ा गया है और इस प्रचंड महामारी का
उपयोग व्यक्ति पूजा को बढ़ाने के लिए है.
कई विपक्षी नेताओं ने
भी इसकी आलोचना की है. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र
लिख कर दिए गए सुझावों में एक सुझाव यह भी दिया है कि ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’
की समस्त राशि ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ में स्थान्तरित कर दी जाये
जिसमे पहले से ही तीन हजार आठ सौ करोड़ रूपए हैं. कांग्रेस सांसद शशि थरूर कहते है
कि एक अन्य ट्रस्ट बनाने की बजाये जिसके नियम और खर्चे अपारदर्शी हैं उन्होंने ‘प्रधानमंत्री
राष्ट्रीय सहायता कोष’ का नाम बदल कर प्रधानमंत्री केयर्स फंड क्यों नहीं रख दिया.
प्रधानमंत्री को अपने अतार्किक निर्णयों का जवाब देश को देना होगा.
इस फंड के पक्ष में
भारतीय जनता पार्टी के सांसद राकेश सिन्हा कहते हैं कि इस फंड का उपयोग न केवल
कोरोना वायरस से लड़ने के लिए किया जायेगा बल्कि लाक डाउन की वजह से प्रभावित लोगो
की सहायता के लिए भी किया जा सकेगा. ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ में किसी
दान के लिए मना नहीं किया है एवं इस कोष का उपयोग अन्य सहायता कार्यो के लिए
भी किया जा सकता है. यहां लोग आश्वत है की
इसका उपयोग केवल कोरोना वायरस से लड़ने के लिए किया जायेगा.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी पर जो आक्षेप कांग्रेस लगा रही है उसका एक स्पष्ट कारण है. कांग्रेस कहती है
कि मोदी सरकार उसकी योजनाओं का नाम वदल कर अपने पाले में ला रही है, योजना आयोग का
नाम ही बदल कर नीति आयोग रख दिया. स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़े उसके नेताओं को
कांग्रेस पार्टी के विरोध के लिए प्रचारित कर रही है और अपनी नाकामियों को छुपाने
के लिए देश के प्रथम प्रधानमंत्री प. जवाहर लाल नेहरु की नीतियों को जिम्मेवार मान
रही है. दूसरा कारण कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता निति पर भारतीय जनता पार्टी उसे
हमेशा कटघरे में खड़ा रखती है पर कांग्रेस के पास उसके हिंदुत्ववादी एजेंडा का अभी
तक कोई तोड़ नजर नहीं आ रहा है. तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण नरेंद्र मोदी की वह
कला है जिससे वह विषम परिस्थियों को अपने अनुकूल कर जनमानस को अपने पक्ष में करते
हैं. इसका उदाहरण कोई भूला नहीं होगा जब आम चुनाव के दौरान राहुल गांधी का प्रचार
जोड़ पकड़ता जा रहा था, तब पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक ने पाकिस्तान को तो सबक
सिखाया ही पर सेना के उस पराक्रम का उपयोग जिस प्रकार उन्होंने जनमानस को अपने
पक्ष में करने के लिए किया उससे समूचे विपक्ष के चुनाव प्रचार पर प्रतिकूल प्रभाव
पड़ा.
अब ताजा स्थिति
वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर बनी है. सरकार द्वारा गंभीर आरंभिक लापरवाहियां
जिसने देश में कोरोना को फ़ैलाने में मदद करी, हजारों मजदूरों को सैकड़ों मील पैदल
चल कर घर जाना पड़ा, लाखो लोगो को काम से और कई राज्यों से विस्थापित होना पड़ा,
भूखे रहना पड़ा, हस्पतालों में डाक्टर, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को
सुरक्षा सामग्री, मास्क आदि का उपलब्ध न होना और निर्यात के लिए उसकी अनुमति देना,
आदि कमियों के बावजूद नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं दिखाई दे रही
है. थाली बजाना, दिया जलना जैसे अपील पर अधिकतर जनता का साथ और वैश्विक नेताओं
द्वारा कोरोना महामारी को देश और वैश्विक स्तर पर संभालने के लिए उनकी प्रशंसा हो
रही है. इस महामारी के परिपेक्ष्य में नरेन्द्र मोदी ने बड़ी चतुराई से प. जवाहर
लाल नेहरु द्वारा स्थापित ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ के स्थान पर
‘प्रधानमंत्री केयर्स कोष’ की स्थापना कर दी. आज की स्थिति में कांग्रेस पार्टी के
पास इसका प्रतीकात्मक विरोध करने के सिवा कुछ बचा नहीं है. अब भविष्य ही बतायेया
कि पुराने कोष के भाग्य में क्या लिखा है.
कई लोगो के मन में पारदर्शिता का सवाल उठ
रहा है उस पर भी एक नजर डाल लेते हैं. ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष’ के
स्थापना के समय इसका संचालन एक छ: सदस्य कमिटी
करती थी जिसमे प्रधान मंत्री प. जवाहर लाल नेहरु, उपप्रधान मंत्री सरदार पटेल, वित्
मंत्री शनमुखम शेट्टी, टाटा ट्रस्ट का एक प्रतिनिधि, कोंग्रेस
पार्टी के अध्यक्ष पट्टाभी सीतारमैया आदि
थे. १९८५ में राजीव गांधी की सरकार आने के बाद इस कोष का संचालन प्रधानमंत्री के विवेक पर छोड़ दिया गया. इसका कार्य प्रधानमंत्री
कार्यालय के अधिकारी देखते हैं. कोष का वितरण और लाभार्थियों का चयन केवल प्रधान
मंत्री के विवेक पर निर्भर है. ‘प्रधानमंत्री केयर्स फंड’ एक ट्रस्ट है. इसके
संचालन और निर्णय के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गृहमंत्री अमित शाह,
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और वितमंत्री निर्मला सीतारमण को शामिल किया गया है. इसमे
अंतिम निर्णय की जिम्मेदारी प्रधानमत्री की ही होगी.
दोनों ट्रस्ट में दान
की राशि पर आयकर अधिनियनिम की धारा ८० (जी) के अंतर्गत शत प्रतिशत छूट प्राप्त है.
इसी प्रकार दोनों ट्रस्ट में ‘कंपनियों के सामाजिक उत्तरदायित्व’ (कार्पोरेट सोशल
रेस्पोंसिबिलिटी) के फंड में से दान दिया जा सकता है. ‘प्रधानमंत्री राष्ट्रीय
सहायता कोष’ का ऑडिट थर्ड पार्टी द्वारा किया जाता है परन्तु ‘प्रधानमंत्री केयर्स
कोष’ का ऑडिट कौन करेगा इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है. जनता को यह जानने
का अधिकार होना चाहिए कि उसके दान के पैसे का उपयोग कहां कहां और कैसे किया जा रहा
है, अत: पारदर्शिता के लिए दोनों कोष का ऑडिट भारतीय नियंत्रक और महालेखा परिक्षक
से करवाना चाहिए और दोनों कोष को ही सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत लाना
चाहिए. अभी तक लोग अपनी इच्छानुसार दोनों में से किसी भी कोष में दान कर सकते हैं.
इसमे कोई बंधन नहीं है, परन्तु प्रधानमंत्री जिस कोष में दान देने की अपील करेंगे अधिकतर
दान उसी कोष में आयेगा.
n अशोक कुमार
शरण, प्रबंधक ट्रस्टी, सर्व सेवा संघ, सेवाग्राम (वर्धा)